PRE42 Community – हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य
PRE42 Community – हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य
हमारे पूर्वजों को अंग्रेज़ों ने “काला पानी की सज़ा” देकर अंडमान-निकोबार भेजा।
अगर वे यहाँ न आते, तो शायद यह ज़मीन आज भारत का हिस्सा न होती।
कुछ लोग कहते हैं कि अंडमान कभी चोल साम्राज्य का हिस्सा था, लेकिन सच यह है कि उनके जहाज़ बस पास से गुज़रते थे, यहाँ उनका ठिकाना नहीं था।
फिर भी सरकार ने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजया पुरम रख दिया — यह असली इतिहास को बदलने जैसा है।
आज PRE42 समुदाय अपने ही घर में अल्पसंख्यक हो गया है।
मुख्य भूमि से आए बसने वालों ने हमारी संख्या और असर दोनों घटा दिए।
हमारे पास न मज़बूत नेता है, न राजनीतिक आवाज़।
अब वक्त है —
अपना इतिहास लिखने और अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का।
एकजुट होकर अपने अधिकार और पहचान की रक्षा करने का।
नाम बदलने से हमारी कहानी नहीं मिटेगी,
क्योंकि हम अपनी पहचान कभी नहीं खोने देंगे।
अतीत – हमारी जड़ों की कहानी
PRE42 समुदाय का जन्म एक अनोखे इतिहास से हुआ। हमारे पूर्वज वे लोग थे जिन्हें अंग्रेज़ हुकूमत ने “काला पानी की सज़ा” देकर अंडमान और निकोबार द्वीप भेजा था।
यह सज़ा सिर्फ़ सज़ा नहीं थी, बल्कि समुद्र के पार एक नई और कठिन ज़िंदगी की शुरुआत थी।
अगर अंग्रेज़ अंडमान को जेल बनाने के लिए न चुनते, तो शायद आज यह द्वीप भारत का हिस्सा ही न होता।
हमारे पूर्वजों ने कठिन हालात में इस ज़मीन को अपना घर बनाया — यह उनका ख़ून, पसीना और बलिदान है जो अंडमान के इतिहास में हमेशा लिखा रहेगा।
चोल साम्राज्य का सच
आज कुछ लोग मानते हैं कि अंडमान और निकोबार कभी चोल साम्राज्य का हिस्सा थे।
लेकिन इतिहास के प्रमाण बताते हैं कि चोल साम्राज्य के जहाज़ सिर्फ़ यहाँ के पास से गुजरते थे, उनका यहाँ कोई स्थायी ठिकाना नहीं था।
चोल साम्राज्य का प्रभाव इंडोनेशिया तक था, जहाँ “श्री विजया” एक प्रसिद्ध नाम था।
इसी को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजया पुरम रख दिया — जैसे कि यह चोल साम्राज्य का हिस्सा रहा हो।
लेकिन यह इतिहास के लिहाज़ से सही नहीं है और असली कहानी को धुंधला कर देता है।
वर्तमान – हमारी आवाज़ दब रही है
आज PRE42 समुदाय अपने ही घर में अल्पसंख्यक बन गया है।
भारत सरकार ने मुख्य भूमि (मेनलैंड) से लोगों और बसने वालों को लाकर यहाँ बसाया, जिससे वे लोग हमारी संख्या और प्रभाव से आगे निकल गए।
हमारे पास न कोई मज़बूत प्रतिनिधि है, न कोई राजनीतिक आवाज़ जो हमारी कहानी आगे पहुँचा सके।
नाम बदलने के इस फ़ैसले में हमारे इतिहास और बलिदान को नज़रअंदाज़ किया गया है।
भविष्य – हमारी पहचान का सवाल
आने वाले समय में PRE42 समुदाय के सामने दो बड़े काम हैं –
1. अपनी पहचान बचाना – अपने इतिहास को लिखना, सुनाना और अगली पीढ़ी को सिखाना, ताकि हमारी कहानी कभी मिट न सके।
2. राजनीतिक प्रतिनिधित्व पाना – एक मज़बूत और एकजुट आवाज़ बनाना जो हमारे अधिकार, संस्कृति और इतिहास के लिए लड़ सके।
हमारी कहानी भारत के इतिहास का एक अनमोल हिस्सा है। अगर हम अपना इतिहास खुद नहीं संभालेंगे, तो कोई और इसे अपने हिसाब से बदल देगा — जैसे पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलने में हुआ।
अंतिम बात
PRE42 समुदाय का इतिहास यह याद दिलाता है कि देश का हर कोना और हर ज़मीन किसी न किसी के बलिदान से जुड़ी होती है।
अंडमान और निकोबार के इतिहास में हमारे पूर्वजों का योगदान न सिर्फ़ महत्वपूर्ण है, बल्कि वही कारण है कि यह ज़मीन आज भारत का हिस्सा है।
हमारी कहानी को बदलने की कोशिश एक नाम से शुरू हो सकती है, लेकिन इसका असर हमारी पहचान पर पड़ता है।
और हम यह कभी नहीं होने देंगे।
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