क्या Andaman and Nicobar Islands PRE42 समुदाय के नहीं हैं?

क्या हम हमेशा दूसरों के अधीन ही रहेंगे?

पहले अंग्रेज आए और हमारे पुरखों को जबरन इन द्वीपों पर लाकर बसाया। फिर जापानी सेना का शासन आया। और अब — दिल्ली में बैठे नौकरशाह और बाहर से लाए गए बसवासी (settlers और mainlanders) यहाँ की ज़िंदगी, राजनीति और संसाधनों पर हक जमा चुके हैं।

हम PRE42 समुदाय के लोग, जिनके पुरखे इन द्वीपों की बुनियाद रख कर गए, आज अपने ही घर में पराए बना दिए गए हैं।

"क्या हमें सिर्फ़ गुलामी और सहनशीलता के लिए ही छोड़ा गया है?"


🔹 PRE42 कौन हैं?

PRE42 समुदाय वे लोग हैं:

जो 1942 से पहले अंडमान और निकोबार द्वीपों में आकर बसे,

जिनके पूर्वजों को ब्रिटिश शासन के तहत यहाँ जेल में बंदी, सिपाही, कर्मचारी, मजदूर, किसान, शिक्षक या अन्य रूप में लाया गया,

जिनके वंशजों ने इन द्वीपों को जी-जान से संवारा, बसाया और सुरक्षा दी।


ये वही लोग हैं जिन्होंने —

जापानी हमलों के समय अपनी जानें दीं,

ब्रिटिश शासन में भी पीढ़ियों तक ज़ुल्म सहा,

आज़ादी के बाद भी एक अदृश्य ज़ंजीर में जकड़े रहे।


📉 आज की हालत क्या है?

पहचान का संकट:

PRE42 को अब सरकारी दस्तावेजों में, मीडिया में, या शिक्षा में कोई खास मान्यता नहीं। हमारी पहचान को योजनाबद्ध तरीके से धुंधला किया जा रहा है।

भूमि अधिग्रहण:

आजादी के बाद हमारी जमीनें सरकार ने स्कूल, हवाईअड्डे, संस्थान और आवास योजनाओं के नाम पर ले लीं। हमें न सही मुआवज़ा मिला, न सम्मान।

प्रतिनिधित्व से वंचित:

विधानसभा हो या संसद, पंचायत हो या नगर परिषद — हर जगह बाहरी लोग बैठे हैं।


जनसंख्या असंतुलन:

अब PRE42 लोग मात्र 5-10% रह गए हैं, जबकि 90% आबादी बाहर से लाई गई है। ऐसे में कोई भी PRE42 उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सकता।

 "हमारे वोट कम हैं, पर हमारे ज़मीर की ताकत बड़ी है।"


🔻 संस्कृति और इतिहास की उपेक्षा

PRE42 समुदाय के तीज-त्योहार, खानपान, परंपरा और भाषा स्कूल के पाठ्यक्रमों से ग़ायब हैं।

म्यूज़ियम, गाइडबुक्स और सरकारी वेबसाइटों में हमारा ज़िक्र नाम मात्र का है।

नई पीढ़ी को अपने ही पूर्वजों का संघर्ष नहीं पता।

"इतिहास में न दिखाए जाना, धीरे-धीरे मिटा दिए जाने का पहला चरण है।"


🗳️ लोकतंत्र का ढोंग?

PRE42 अगर चुनाव लड़ते हैं, तो उन्हें वोट नहीं मिलते क्योंकि:

1. वोटर ज़्यादातर mainlanders और settlers हैं,

2. बाहरी लोग नहीं चाहते कि PRE42 सत्ता में आए,

3. उन्हें डर है — PRE42 अगर जाग गया, तो उनका प्रभुत्व खत्म हो जाएगा।

"लोकतंत्र की बुनियाद समानता है, पर यहाँ संख्या के नाम पर असमानता है।"



⚠️ यह भी एक छुपी हुई गुलामी है

आज जब हम देखते हैं कि PRE42 का युवा बेरोजगार है, बुजुर्ग उपेक्षित हैं, और महिलाएं असुरक्षित हैं — तब क्या यह सच में आज़ादी है?

हम सिर्फ़ शांति के नाम पर चुप हैं, मगर भीतर ही भीतर हमारी आत्मा सवाल कर रही है:

 "क्या ये ज़मीन कभी हमारी थी भी, या बस इस्तेमाल की जा रही थी?"



🌊 क्या Andaman and Nicobar अब हमारे नहीं रहे?

हमने इन द्वीपों को बसाया, सजाया और संजोया — लेकिन आज शासन, नीति और संपत्ति सब किसी और के हाथ में हैं।

अब अगर हम नहीं जागे, तो हमारी आने वाली पीढ़ी सिर्फ कहानियाँ सुनेगी कि कभी PRE42 नाम का कोई समुदाय था।

"अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ़ संघर्ष की नहीं, स्वाभिमान और नेतृत्व की कहानी लिखें।"

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